यह एक मिनट में 600 फायर, 2.5 सेकंड में …
AK-47 हर कोई जंग लड़के दूसरे की संपत्ति हड़प लेना चाहता है ।
और इसी की वजह से और कोई नई नई हथियार का यूज करना चाहता है
ताकि वह सामने वाले से कमजोर ना दिखे।
जैसे सबसे पहले लोग पत्थर से लड़ते थे ।
फिर उसको थोड़ा सा दिमाग लगाकर भाला बनाया गया। फिर उसके बाद तीर धनुष चलने लगी उसके
बाद फिर बंदूक बनाई गई जिसने जंग लड़ने की तरीके ही बदल दिया।
इसलिए आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से आर्मी की मनपसंद एके-47 के बारे में बताएंगे।
🤔🔫AK-47 ki sachhai?
यह बात है आज से 80 साल पहले 1940 की जब रसिया(यूनाइटेड किंगडम ) के एक व्यक्ति
Mikhail Kalashnikov को कंधे पर गोली लगी,और उन्हें पास के अस्पताल में भर्ती कराया गया।
तब उनका इलाज कराया जा रहा था। और वही हॉस्पिटल में कुछ और भी सैनिक मौजूद थे
जोकि सैनिक को दी गई बंदूकों के बारे में चर्चा कर रहे थे। कि दी गई बंदूकें बहुत ही खराब काम करती है
जिसके वजह से कई सारे सैनिक मारे जाते हैं।
उन सारे सैनिकों की बातें सुनकर मिखाईल ने निश्चय किया कि क्यों ना बंदूक बनाई जाए।
मिखाईल को गोली लगने के 6 दिन बाद हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होकर जब वह घर गए उन्होंने
बंदूकों पर खोजबीन शुरू कर दी।
वह कुछ व्यक्ति से मिले जो बंदूकें बनाने के बारे में अच्छी तरह से जानते थे।
उन्होंने 2 साल में बंदूकों के बारे में काफी जानकारी इकट्ठा की जिससे कि उनको बनाने में बहोत मिलती।
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सर मिखाइल की मेहनत
2 साल की कड़ी मेहनत के बाद मिखाइल की दो बंदूकें 1942
में सामने आई पहला नाम sub machine gun और दूसरी की light machin gun बताई गई।
1949 में सोवियत सेना द्वारा आधिकारिक तौर पर अपनाए जाने के लगभग उसी समय से, AK-47 को संचालित करने में आसान, बीहड़, कठिन परिस्थितियों में
भरोसेमंद और बड़े पैमाने पर उत्पादित होने के रूप में मान्यता दी गई थी।
यह लगभग 700 मीटर प्रति सेकंड के थूथन वेग के साथ 7.62-मिमी राउंड पर आधारित था,
इसमें 600 राउंड प्रति मिनट की चक्रीय फायरिंग दर थी, और यह सेमीआटोमैटिक और स्वचालित राउंड दोनों में फायर कर सकता था।
बैरल के ऊपर एक अलग गैस-रिटर्न ट्यूब में एक पिस्टन लगा होता है जिसे फायरिंग पर मजबूर किया जाता है ताकि तंत्र को सक्रिय किया जा सके
जो खर्च किए गए कारतूस को निकाल देता है और अगले दौर के लिए हथौड़ा उठाता है। AK-47 को दो बुनियादी विन्यासों में तैयार किया गया था।
पर इन दोनों बंदूकों को ज्यादा पसंद नहीं किया गया जिनकी वजह से उन्होंने
इन मशीनों को बनाना बंद कर दिया। पर वे हार नहीं माने।
तब mikhail ने 1944 में Sami auto gun बनाई जोकि
गैस पे चलती थी। फिर उन्होंने एक गण कंपटीशन में अपने इस नई बंदूक से मुकाबला किया। पर वहां
इनको SKS-12 GUN से हारनी परी। इस हार के बाद इन्होंने और भी कड़ी मेहनत चालू कर दी।
फिर कड़ी मेहनत के बाद, उन्होंने 1946 में एक गन menfacture किया, बनाई
जिसका नाम इन्होंने AK-46 रखा। यह बंदूक काफी हद तक सही था पर इसे पानी में इस्तेमाल नहीं कर सकते थे।
जिसके वजह से उन्होंने 1947 में इसको थोड़ा मॉडिफाई करके एक और बंदूक बनाया जिसका नाम इन्होंने एके-47 रखा।
खास जानकारी
AK-47 कड़ी धूप,पानी,हवा, ठंड कहीं भी बड़ी आसानी से चला सकता है।
इस बंदूक की सबसे खासियत बात यह बहुत ही चलाने में आसान होती है जिससे बच्चा भी चला सकता है। AK47 को सबसे पहले आर्मी को दिया गया
ताकि वह इसमें कुछ कुछ खराबी बता सकें पर किसी
ने इसके बारे में कोई भी तकनीकी खमिया नहीं है जिसके कारण सबको यह बंदूक बहुत पसंद आया।
आपको बता दूं कि Mikhail Kalashnikov ने आज तक एके-47 से कोई भी पैसा नहीं कमाई वह इस बंदूक को देश की सेवा मानते हैं
🤔AK-47 ka pura nam? full form of
A__Automatic
K__Kalashnikov
47__सन 1947
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